कामरेड राजा बहुगुणा का निधन, राज्य निर्माण आंदोलन में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

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हल्द्वानी। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के अध्यक्ष और उत्तराखंड के प्रतिष्ठित नेता, कामरेड राजा बहुगुणा का दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 2023 से लिवर कैंसर से जूझ रहे थे। उनका निधन पार्टी और उनके समर्थकों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। कामरेड राजा बहुगुणा का जीवन मेहनतकश जनता के संघर्षों के प्रति अडिग समर्पण का प्रतीक था। 16 अप्रैल 1957 को नैनीताल में जन्मे राजा बहुगुणा का राजनीतिक जीवन कालेज के दिनों से शुरू हुआ था। उन्होंने अपने युवा दिनों में युवा कांग्रेस से जुड़कर राजनीति में कदम रखा, लेकिन शीघ्र ही शासक वर्ग की राजनीति से उनका मोहभंग हो गया। सत्तर के दशक में आपातकाल विरोधी आंदोलन और चिपको आंदोलन से जुड़कर उन्होंने पर्यावरण और किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

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अस्सी के दशक में जब उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन ने जोर पकड़ा, कामरेड बहुगुणा ने इस आंदोलन को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी से जुड़कर राज्य के निर्माण के लिए विशाल रैलियां आयोजित कीं और इसके लोकतांत्रिक अधिकारों को स्पष्ट रूप से सामने रखा। उन्होंने उत्तराखंड पीपल्स फ्रंट की भी स्थापना की, जो अलग राज्य की आवश्यकता को लेकर जन जागरूकता फैलाने का कार्य करता था। कामरेड बहुगुणा की संघर्षशील राजनीति की पहचान कई आंदोलनों से है, जिनमें भूमिहीनों को भूमि वितरण, महिला हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष, और रोजगार के अधिकारों के लिए किए गए आंदोलनों का उल्लेख प्रमुख है।

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उन्होंने बिंदुखत्ता और महतोष मोड़ जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने पुलिस दमन और जेल यातनाओं का साहसिक रूप से सामना किया। 1989 में, उन्होंने नैनीताल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और अच्छे वोट हासिल किए। इसके बाद, पार्टी की गतिविधियां उत्तराखंड के हर जिले में फैल गईं, और वे पार्टी के राज्य सचिव, केंद्रीय कमेटी सदस्य और ऐक्टू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसे पदों पर कार्यरत रहे। 2023 में पटना में हुए पार्टी के 11वें महाधिवेशन में उन्हें केंद्रीय कंट्रोल कमीशन का अध्यक्ष चुना गया था।

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