उत्तराखण्डः नहीं होता गुरुजनों का सम्मान, उच्च शिक्षा निदेशालय ने पदनाम परिवर्तन की गुहार बैरंग लौटाई

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उत्तराखंड के राजकीय महाविद्यालयों में न्यूनतम वेतन पाकर भी ज्ञान बाँट रहे गुरुओं के सम्मानजनक पदनाम पाने की आशा धूमिल हो गई है। उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रेषित पदनाम परिवर्तन के प्रस्ताव को शासन ने बैरंग वापस करते हुए साफ किया है कि विचारोपरांत नितांत अस्थाई शिक्षकों के पदनाम परिवर्तन की आवश्यकता नहीं पाई गयी है। यहाँ बताते चलें कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके डिग्री कालेज के पूर्व प्राध्यापक डॉ. सन्तोष मिश्र उच्च शिक्षा में गुरुओं के लिए काम चलाऊ, नितान्त अस्थाई जैसे शब्दों को अपमानजनक बताते हुए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं। डॉ. मिश्र का कहना है कि उत्तराखंड के उच्च शिक्षा विभाग ने गुरु, शिक्षक, प्राध्यापक जैसे सम्मानीय पद का नाम कामचलाऊ, नितान्त अस्थाई कर दिया है। गेस्ट, फैकल्टी, विज़िटिंग फैकल्टी, अतिथि प्राध्यापक जैसे नामों के होते हुए भी काम चलाऊ, नितान्त अस्थाई जैसे अपमानजनक नाम उच्च शिक्षित बेरोजगारों को हतोत्साहित ही करते हैं। एक तरफ यूजीसी के द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन 50000 न देकर उनका हक मारा जा रहा है और दूसरी तरफ ऐसे नामकरण। लोक में एक कहावत है कि गुड़ न दे तो गुड़ जैसी बात तो करे।
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