क्या आप जानते है कि बाबा साहब हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाना चाहते थे किंतु ? पढ़िये अम्बेडकर जयन्ती पर आज़ाद क़लम विशेष

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आज़ाद क़लम विशेष:- बाबा साहब के सम्मान में अम्बेडकर जयन्ती बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है लेकिन क्या आप जानते है कि बाबा साहब ने हिन्दू धर्म क्यों त्याग कर बुद्ध धर्म अपनाया चारों धर्मों की तुलना डॉ. आंबेडकर ईश्वरीय वाणी के संदर्भ में करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘इन चार धर्म प्रवर्तकों के बीच एक और भेद भी है. ईसा और मुहम्मद दोनों ने दावा किया कि उनकी शिक्षा ईश्वर या अल्लाह की वाणी है और ईश्वर वाणी होने के कारण इसमें कोई त्रुटि नहीं हो सकती और यह संदेह से परे है. कृष्ण अपनी स्वयं की ही धारण की हुई उपाधि के अनुसार विराट रूप परमेश्वर थे और उनकी शिक्षा चूंकि परमेश्वर के मुंह से निकली हुई ईश्वर वाणी थी, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कोई गलती होने का प्रश्न ही नहीं उठता.’

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इन तीनों की तुलना बुद्ध से करते हुए आंबेडकर लिखते हैं कि ‘बुद्ध ने अपनी शिक्षा में इस तरह के अंतिम सत्य होने का दावा नहीं किया. ‘महापरिनिर्वाण-सूत्र’ में उन्होंने आनन्द को बताया कि उनका धर्म तर्क और अनुभव पर आधारित है.’ बुद्ध ने यह भी कहा है कि उनके अनुयायियों को उनकी शिक्षा को केवल इसीलिए सही और जरूरी नहीं मान लेना चाहिए कि यह उनकी (बुद्ध की) दी हुई है. यदि किसी विशेष समय और विशेष स्थिति में इस शिक्षा में से कोई बात सटीक न मालूम होती हो तो इसमें उनके अनुयायी सुधार कर सकते हैं और कुछ चीजों का त्याग कर सकते हैं.

हिन्दू धर्म से घृणा हो गई थी बाबा साहब अम्बेडकर को

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हिन्दू धर्म के अनुसार न शूद्र और न नारी धर्म के उपदेशक हो सकते थे. न ही वह संन्यास ले सकते थे और न ईश्वर तक पहुंच सकते थे. दूसरी ओर बुद्ध ने शूद्रों को भिक्षु संघ में प्रविष्ट किया. उन्होंने नारी के भिक्षुणी बनने के अधिकार को स्वीकार किया (बुद्धा एंड दी फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन).

आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया. इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और फिर अपने हिसाब से श्रेष्ठ धर्म का चयन किया. अच्छे और कल्याणकारी धर्म की उनकी खोज उन्हें बौद्ध धम्म तक ले गई. इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया.

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