पर्यावरण दिवस विशेष- बचाने विश्व पर्यावरण, चुने वैज्ञानिक आवरण

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तपती धरती, आग उगलते रेगिस्तान, जलते ज्वालामुखी, दावाग्नि बरसाती सूरज की किरणें, पिघलते हिमनद, बढता समंदरों का जल स्तर, बारिश का विस्फोटक चेहरा, बिना पानी बरसात इत्यादि घटनाएं किसी खतरनाक के होने का संदेशा बता रही है। पर्यावरणविद, भुगर्वशास्त्री, प्रकृति प्रेमी, मृदा विशेषज्ञ एवं समुद्र विज्ञानी इसे ग्लोबल वार्मिंग का नाम देते है। नीले ग्रह में सभी जीव-जंतु, नभचर, जलचर, उभयचर, कीट-पतंग, फ़्लोरा-फौना सभी इसके चपेट में आते जा रहे है। ये सब भविष्य में किसी बड़े परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं। और ये परिवर्तन होमोसपीएन्स से लेकर सभी प्राणियों के प्रतिकूल रहने की ही ज्यादा मुखालफत कर रहे है।
जल और वायु यानी जलवायु और प्रकृति का आवरण यानी पर्यावरण दोनों खतरे में हैं। इनमें से बहुलक घटनाएं मानवजन्य ही हैं और जो शेष बच गयी वो भी मानव के द्वारा किये गए अवैज्ञानिक कृत्यों के साइड इफ़ेक्ट हैं। कुल मिलाकर इसकी टोपी उसके सिर पहनाने से काम चलाने वाला नही है। जिम्मेदारी हम सबकी हैं। ये अलग बात है कि उसकी मात्रा में विचलन करती हैं। हमारी लालची प्रवृति व जमघोरी ने प्रकृति संरक्षण कम उपभोग ज्यादा किया है। असंतुलन की स्थिति भी एक प्रभावित पैरामीटर है ग्लोबल वार्मिंग का। परिणाम आज सबके सामने है। मार्च के महीने में मई से गर्मी, दिसंबर में अगस्त समान बारिश, पेड़- पौधों में असामान्यता फल फूल लगना, सहचरों का व्यवहार समझ से परे, जानवरों के साथ इंसानी रुख में जमीनी परिवर्तन रूखापन, अनियंत्र की समस्या इत्यादि सामाजिक एवं वैज्ञानिम कारण गिनाने के लिए काफी है कि हम एक ऐसे युग मे जी रहे है जहाँ हवा भी शुद्ध नही रह गयी है। हवा में घुलती हानिकारक कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड सल्फर डाई ऑक्साइड,क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओजोन के परत में बढता छेद जिससे सूरज की हानिकारक अल्ट्रा वायलेट किरणो का पृथ्वी तक पहुचना, ब्लैक कार्बन व इसके एयरोसोल कुल मिलाकर विशुद्ध रूप से गलिबल वार्मिंग को बड़ा रहे है। आसमान से बरसात पानी की बुंदे याद या तो बहुत तेज गिरती है या इतनी कम गिरती है कि नीचे तक भी नही पहुच पाती है। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह जुसमे विभिन्न खनिज लवण, मैग्नेशियम, कैल्शियम, पोटास, आयरन इत्यादि जो मिट्टी को उपजाऊ बनाये रखती है खिसकते जा रही है। इसका दुष्परिणाम हमे अन्न के उत्पादन में देखने को मिल सकता है। रोटी, कपड़ा और मकान जैसे मूलभूत सुविधाओं पर कैची चलते देर नही लगेगी। इसलिए कल बचाने के प्रयास आज से ही शुरू करना होगा। हमे चीजो को बचाने के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा। तभी है प्रगति और गति दोनों को बनाये रख सकने में कामयाब हो सकेंगे। तीन आर यानी रीयूज़,
रीसाईकल, रीडूस से आगे चलकर सार्वजनिक परिवहन में यातायात, साइकिलिंग को बढ़ावा, प्लास्टिक जब तलक जरूरी ना हो बाई-बाई, इसकी जगह कपड़े, जूट, पत्ते के पैकेटों का उपयोग, यह तक कि बच्चो को डॉट पेन की जगह इंक पेन देना जिससे इसका अधिक बार प्रयोग किया जा सके नही तो कूड़े के एवेरेस्ट से मिलते देर नही लगेगी। इन सबको दैनिक जीवन का हिस्सा बनना ही पड़ेगा तभी पर्यावरण की गाड़ी सुरक्षित चल पाएगी। हर एक आयोजनों पर वृक्षारोपण और पहले से काज पेड़-पौधों की उचित देखभाल, रखरखाव कर इसकी उत्सव बनाना पड़ेगा। हमारी कल की खुशी इन्ही छोटी-छोटी आदतों, रुझानों, स्वभावो में छिपी रहने वाली हैं। पेपरलेस इकॉनमी, वर्क, बहीघाता, अभिलेख,वर्चुअल मीडिया, तकनीकी की मदद से इस अभियान को प्रकृति बचाने व पर्यावरण को सुरक्षित रखने में क्रांतिकारी कदम के तौर पर आगे बढ़ा जा सकता है। वैज्ञानिक अप्रोच, दृष्टिकोण चीजो को ठीक ठाक समझने और उनको करीब से जानने से समाधान तक ले जाने में जरूर हमारी मदद करेगा। आज उठाया गया इस ओर एक कदम हमें कल मंज़िल तक जरूर पहुचायेगा।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
उत्तराखंड
(लेखक प्रकृति संरक्षण, पर्यावरण, वैज्ञानिक शोधों व शिक्षण से जुड़े है)

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