राजनीतिक दलों में सरकार बनने न बनने की हलचल के बीच पढ़िए आखिर कैसे तैयार होता है एग्जिट पोल
आज़ाद क़लम विशेष, हल्द्वानी। पूरे देश में एग्जिट पोल को लेकर इस समय बहस चल रही है। चले भी क्यों नहीं, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद एग्जिट पोल जो सामने आए हैं उसने राजनीतिक पार्टियों में हलचल मचा दी है। पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी रहती है। एग्जिट पोल चुनाव कंपनियों निजी तौर पर करती है। इसे उसी दिन टेलीविजन पर दिखाया जाता है। मोटे तौर पर जब चुनाव में मतदान देकर मतदाता बाहर निकलते हैं, तब कंपनियों के एजेंट उनसे सवाल पूछते हैं कि आपने किसे वोट दिया है? इस आधार पर पूरे विधानसभा क्षेत्र के सैंपल में से जिस उम्मीदवार को ज्यादा लोग समर्थन देते हैं, उसे उस सीट पर जीते हुए उम्मीदवार के रूप में दिखाया जाता है।
इसी तरह राज्य के पूरे विधानसभा का आंकड़ा निकाला जाता है और बताया जाता है कि राज्य में इस पार्टी की इतनी सीटें मिलने का अनुमान है। एग्जिट पोल सही भी हो सकता है और गलत भी। इसलिए लोगों को यह जानना जरूरी है कि एक्जिट पोल के क्या नियम हैं और इसे कैसे कंपनियां करती है।
कुछ आलोचकों का मानना है कि एग्जिट पोल के लिए बहुत कम सैंपल लिए जाते हैं। इससे चुनाव में कैंडिडेट के जीत का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि इसे बहुत वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर किया जाता है। सभी विधानसभा सीटों पर तय सैंपल लिए जाते हैं। यानी यह पहले से तय होता है कि एक विधानसभा सीट से कितने सैंपल लेने हैं या कितने लोगों से पूछना है कि आपने किसे वोट किया है। एक विधानसभा क्षेत्र से 200 से 300 सैंपल को बढ़िया एग्जिट पोल माना जाता है। एग्जिट पोल के अंतिम निर्णय पर पहुंचने के लिए एजेंसी के विश्लेषक बारीक अंतर्वस्तुओं पर ध्यान देते हैं। कई कारकों से यह तय होता है कि किसी सीट से कौन उम्मीदवार के जीतने का चांस है। हालांकि इसमें मार्जिन की गुंजाइंश हमेशा बनी रहती है।