लालकुआं सीटः हरीश रावत पर भारी न पड़ जाए कांग्रेसियों का ‘ओवर कॉन्फिडेंस’
किच्छा और हरिद्वार जैसा हश्र न हो
आज़ाद कलम विशेष, हल्द्वानी। हरीश रावत वो नाम जिसके दम पर कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के मंसूबे पाले हुए है, लेकिन राजनीतिक हलकों में सवाल यह उठ रहा है कि क्या खुद हरीश रावत इस स्थिति में हैं कि वो चुनाव जीत सकें या फिर अपनी पार्टी के दूसरे प्रत्याशियों को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें, इसका जवाब है लगता तो नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लालकुआं विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर जिस दिन उन्होने नामांकन कराया था तो उस दिन तो लग रहा था कि यहां से हरीश रावत एकतरफा जीत दर्ज कर सकते हैं लेकिन चुनाव के दरमियान चंद दिनों में ही हवा जब बदलती है तो उसका रुख भांप पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। इस समय जब मतदान के दिन बेहद करीब रह गए हैं तो हरीश रावत लालकुआं सीट पर बुरी तरह से घिरे नजर आने लगे हैं। यहां पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ओवर कॉन्फिडेंस भी हरीश रावत के कमजोर चुनावी मैनेजमेंट पर बुरा असर डाल रहा है। जहां एक ओर भाजपा कार्यकर्ता झुंड के रूप में ही नहीं बल्कि एकल रूप में भी घर-घर में दस्तक देते हुए भाजपा प्रत्याशी डा. मोहन सिंह बिष्ट के लिए मेहनत कर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता झुंड के झुंड टोलिया बनाकर निकल रहे हैं लेकिन हरीश रावत के लिए माहौल बनाने में नाकाम ही साबित हो रहे हैं। हां इतना जरूर है कि कांग्रेसी चुनावी कैंपेन के दौरान फोटो सेशन ऐसे करा रहे हैं जैसे उनसे ज्यादा हरीश रावत के लिए मेहनत कोई नहीं कर रहा। जबकि वास्तविकता यह है कि विधानसभा की जनता के ज़हन में हरीश रावत का नाम अभी तक कोई खास जगह नहीं बना पाया है। इन दो चार आठ दिनों में अगर कांग्रेस या फिर खुद हरीश रावत ने इसपर गौर नहीं किया तो हश्र 2017 की तरह किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीट जैसा हो सकता है।