चलो आज खुलकर बोलें, जरा इन व्यवस्थाओं को तोलें….
चलो एक अलख जगाएं!
चलो कुछ सवाल उठाएं
चलो आज खुलकर बोलें!
जरा इन व्यवस्थाओं को तोलें
ये व्यवस्थाएं ऐसी क्यों है?
समस्याओं जैसी क्यों हैं?
लोकतंत्रा ऐसा क्यों हैं?
षड़यंत्रा जैसा क्यों है?
क्यों रुकती है सांस?
क्यों टूटती है कोई आस?
क्यों बिना इलाज कोई मरता है?
क्यों कोई व्यवस्था से हारता है?
क्यों डरता है कोई काले कोट से?
क्यों दहशत में है सपफ़ेद कोट के?
वर्दी भी भयभीत करती है
क्यों जनता न्याय मांगने में डरती है?
मजबूर कोई रिश्वत देने को?
कोई सक्षम रिश्वत लेने को?
एक कड़वा सच समस्याओं का!
एक झूठा जाल व्यवस्थाओं का!
क्यों डराती है अमीरी गरीबी को?
क्यों होता है कोई मजबूर?
कहीं सजी है सोने की चम्मच?
क्यों शोषित होता है कोई मजदूर?
चलो आज खुलकर बोलें
जरा इन व्यवस्थाओं को तोलें
चलो एक अलख जगाएं
चलों कुछ सवाल उठाएं!!
कुबेर सिंह मनराल
सामाजिक कार्यकर्ता, हल्द्वानी