अस्पताल के फर्श पर तड़पती प्रसूता ने दिया बच्चे को जन्म..उत्तराखंड में मानवता शर्मसार

उत्तराखंड की तीर्थनगरी हरिद्वार से इंसानियत को शर्मसार देने वाली घटना सामने आई है, जिसने न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि मानवता को भी कठघरे में ला खड़ा किया है। आरोप है कि जिला महिला अस्पताल में एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार कर दिया गया, जिसके चलते उसने अस्पताल के फर्श पर तड़पते हुए बच्चे को जन्म दिया।
डॉक्टर ने किया इनकार, फर्श पर हुई डिलीवरी
जानकारी के मुताबिक, मजदूरी करने वाले एक व्यक्ति की पत्नी को प्रसव पीड़ा होने पर 30 सितंबर की रात जिला महिला अस्पताल लाया गया था। परिजनों का आरोप है कि ड्यूटी पर तैनात महिला डॉक्टर सलोनी ने गर्भवती को यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि “यहां डिलीवरी नहीं होगी।” इसके बाद महिला को वार्ड से बाहर कर दिया गया। मदद की उम्मीद में लाए गए परिजन और साथ मौजूद आशा वर्कर की गुहार के बावजूद अस्पताल स्टाफ ने कोई सहायता नहीं की।
“तेरा मरीज है, तू ही सफाई कर”: अमानवीयता की हद
गर्भवती महिला को तड़पता देख भी डॉक्टर, नर्स और कंपाउंडर तमाशबीन बने रहे। पीड़िता के साथ आई आशा वर्कर ने जब स्थिति का वीडियो बनाना चाहा, तो अस्पताल स्टाफ ने उसका मोबाइल फोन छीनने की कोशिश की। आरोप यह भी है कि एक कर्मचारी ने आशा वर्कर से कहा, “तेरा मरीज है, सफाई तू ही कर।” घटना के तुरंत बाद नवजात शिशु और मां को अस्पताल में दाखिल किया गया, लेकिन तब तक अमानवीयता की तस्वीरें कैमरे में कैद हो चुकी थीं।
वायरल वीडियो ने उठाए सवाल
यह दर्दनाक घटना कैमरे में रिकॉर्ड हो गई और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि महिला फर्श पर बैठी दर्द से कराह रही है और आसपास मौजूद स्टाफ मूकदर्शक बना हुआ है। वीडियो के वायरल होने के बाद पूरे राज्य में स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
मामले पर जब मीडिया ने सवाल उठाए, तो हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. आर.के. सिंह ने इसे “आशा वर्कर की साजिश” करार दिया। उनका दावा है कि महिला को रात में अस्पताल में भर्ती किया गया था और डिलीवरी भी यहीं हुई। उन्होंने कहा कि घटना की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी और रिपोर्ट आने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का जीवंत उदाहरण है, बल्कि एक गर्भवती महिला के साथ हुए अमानवीय व्यवहार की भी गवाही देती है। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी महिला इस तरह की अपमानजनक और पीड़ादायक स्थिति का शिकार न हो।
*स्वास्थ्य सेवाएं जीवन रक्षक होनी चाहिए, न कि असंवेदनशीलता का पर्याय।*
(नोट: यह रिपोर्ट घटनास्थल से प्राप्त प्रारंभिक जानकारी व संबंधित पक्षों के बयानों पर आधारित है। मामले की जांच जारी है।)


