नैनीताल की रामलीला में 43 साल से सौहार्द का रंग भर रहे सईब अहमद

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अफज़ल हुसैन फौजी
azadkalam.com नैनीताल। शारदीय नवरात्र और दशहरे के मौके पर देशभर में होने वाली रामलीलाएं सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का जीवंत स्वरूप होती हैं। नैनीताल नगर की तल्लीताल रामलीला इसी का उदाहरण है, जहां बीते 43 सालों से सईब अहमद रामलीला के पात्रों को मंच पर उतारने से पहले उनके मेकअप की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। सईब अहमद बचपन से ही रंगमंच से जुड़े रहे। शुरुआत अभिनय से हुई, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मेकअप को अपनी पहचान बना लिया। वे अकेले ही सभी पात्रों को मंचन के लिए तैयार करते हैं। उनका कहना है कि यह केवल मेकअप नहीं, बल्कि कला और संस्कृति को जीवित रखने का माध्यम है। सईब बताते हैं कि पिछले चार दशकों में रामलीला का रूप काफी बदल चुका है।

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पहले लोग इस आयोजन के दौरान सादगी अपनाते और कई तरह के त्याग करते थे। अब समय के साथ मंचन अधिक नाटकीय और आधुनिक हो गया है। इसके बावजूद श्रद्धा और उत्साह आज भी पहले जैसा ही है। सईब अहमद की पहचान केवल रामलीला तक सीमित नहीं है। समाज में अमन और भाईचारे का संदेश देने वाले सईब घर पर कुंडली भी बनाते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर एक है, बस उसे पूजने के रास्ते अलग-अलग हैं। सईब कहते हैं कि छोटा सा नैनीताल हमेशा अमन-शांति का पैगाम देता रहा है। यहां दशहरे पर रावण के पुतले हों या मुहर्रम के ताजिए, हर धर्म के लोग मिलकर तैयारी करते हैं। यही वजह है कि नैनीताल की रामलीला सांप्रदायिक एकता की जीती-जागती मिसाल बन चुकी है। सईब अहमद की 43 साल के योगदान ने न सिर्फ रामलीला के रंगों को और जीवंत किया है, बल्कि आपसी सौहार्द की अमिट छाप भी छोड़ी है।

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