हल्द्वानी में सादा निकाह ने पेश की मिसाल, दहेज और बारात की परंपराओं को खारिज किया
हल्द्वानी। हल्द्वानी में एक ऐसे निकाह की मिसाल पेश की गई है जो न केवल शरीयत और सुन्नत के मुताबिक था, बल्कि समाज में फैली दहेज की कुप्रथा और बारातियों के लाव-लश्कर की परंपरा को भी खारिज करता है। हल्द्वानी के लाइन नंबर 8 निवासी फहीम अंसारी ने ग्राम मलसी रुद्रपुर के मुहम्मद यूनुस की पुत्री हसीन बानो से एक सादा और शरीयत के मुताबिक निकाह किया, जो इस समय की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के खिलाफ एक सशक्त कदम था। निकाह की प्रक्रिया शहर क़ाज़ी अल्लामा आजम कादरी, इमाम जामा मस्जिद हल्द्वानी द्वारा संपन्न की गई।
इस अवसर पर अल्लामा आजम कादरी ने निकाह के दौरान एक तकरीर की, जिसमें उन्होंने निकाह के नाम पर प्रचलित गैर-इस्लामी परंपराओं, खासकर दहेज और महंगे बाराती लाने की परंपरा का विरोध किया। उन्होंने निकाह को सुन्नत ए रसूल के तरीके पर सरल बनाने की अपील की और इस्लामिक समाज में व्याप्त फिजूलखर्ची और अनावश्यक रीति-रिवाजों को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। फहीम अंसारी के बड़े भाई जहीर अंसारी ने कहा कि यह पहल समाज में दहेज के बोझ को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनका कहना था दहेज की वजह से कई गरीब परिवारों की बेटियां घरों में बैठी रहती हैं। यह कदम समाज में बदलाव लाने में मदद करेगा। फहीम अंसारी के अन्य भाई फरीद ए रिज़वी ने दहेज को भारतीय समाज की परंपरा बताते हुए कहा कि इसे ख़त्म करने की जरूरत है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में दहेज की कोई जगह नहीं है और न ही खुल्फ़ा राशिदीन के समय में ऐसा कोई रिवाज था। उनका मानना है कि दहेज की परंपरा भारतीय उपमहाद्वीप में धीरे-धीरे मुसलमानों के बीच घुसी है, जिसे अब समाप्त करना बेहद जरूरी है ताकि समाज में निकाह को सरल और बोझ रहित बनाया जा सके। फहीम अंसारी के इस सादा निकाह की हर तरफ सराहना हो रही है। साथ ही, वलीमा भी सुन्नत ए रसूल के तरीके से संपन्न किया गया, जिसमें मदरसों के छात्रों और गरीबों को तवज्जो दी गई। निकाह की परंपरा और वैवाहिक रस्मों में बदलाव की यह मिसाल अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन रही है, जो समाज में व्याप्त दहेज और अनावश्यक खर्चों से मुक्ति की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।