हथियारों के अर्थशास्त्र को समझने का बेहतरीन उदाहरण है युद्ध, हमला और जबरन घुसपैठ।

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हल्द्वानी। हथियारों के अर्थशास्त्र को समझने का सबसे बेहतरीन उदाहरण है युद्ध, हमला और जबरन घुसपैठ। ये एक ऐसा बाजार है जो इंसान के डर पर पनपता है इसलिए डर जितना बड़ा होगा हथियार भी उतना बड़ा चाहिए बस आपको अपनी सहूलियत का डर चुनने भर अक्ल चाहिए होती है और उस चयन में आपकी मदद आपके ही घोषित और अघोषित साथी और दुश्मन दोनों ही कर देते हैं अब रूस और यूक्रेन को ही लें हम देखेंगे कि दोनों ही मुल्क नस्ली और भौगोलिक स्तर पर एक ही हैं बस फर्क़ इतना है कि दोनों की पसंद और नापसंद थोड़ी अलग हैं कोई किसी से रिश्ते रखना चाहता है तो कोई ये नहीं चाहता बस इसी ने डर को पैदा करने में मदद कर दी और नतीज़ा समाने है कि आगे से नस्ली और भौगोलिक एकता के बाद भी आवाम अब सदियों तक एक नहीं रह सकेगी इसका मतलब ये बाजार अब सदियों तक फलेगा और पनपेगा। इसका मतलब ये है कि अब यूरेनियम से सिर्फ ज्यादा बिजली ही नहीं बनेगी बल्कि ज्यादा परमाणु हथियार भी बनेंगे क्योंकि डर दिखाकर ही डर को कायम रखा जा सकता है।जैसे जैसे ये डर गहरा होता जाएगा (जो कि अनुमान भी है)इस बाजार के कई कारोबारी खुलकर अपना अपना माल उतारने को मचल पड़ेंगे। मौके से चुके कई देश मसलन अमेरीका, ब्रिटेन, इजराइल तो इस नुमाइश में शामिल ना हो पाने से सकते में हैं ही मगर सीधे ना सही उल्टे किसी भी तरीके से (यूरोपियन यूनियन) इस नुमाइश में शामिल होंगे ही इसका इतिहास गवाह है। यूक्रेन ने शायद ये सोचा भी नहीं होगा कि ऐसी ही एक नुमाइश इराक़ में भी हुई थी जिसमें खुद वो भी अमेरिका के साथ शामिल रहा और आज नुमाइश की जमीन उसकी है और नमूने उसकी आवाम हैं। ये सच है कि जंग कभी भी किसी भी मसले का आखिरी हल नहीं होती बल्कि कई और मसलों को पैदा करती है चाहे ISIS हो या तालिबान हो फिर इस बाजार के हिमायती चले जाते हैं और खरीददार रह जाते हैं आपस में उलझे हुए। किसी भी मुल्क की शान और आन को पनपाने का सही तरीका जंग कभी नहीं रही बल्कि ये तरीका है किसी बाजार को पनपाने का। इंसान ने ताला तब बनाया जब उसको चोरी का डर सताने लगा मतलब ताला चोरी को नहीं बल्कि एक डर को रोकता है चोरी तो उसके बाद भी होती हैं। असल बात ये समझने की है कि क्या सच में जंग नैतिक है? तो इसका जवाब नहीं में होगा बल्कि जंग आर्थिक कारणों से होती हैं। आप कल्पना कीजिए कि अगर रूस, यूक्रेन को फतेह कर भी लेगा तो क्या वो पहले जैसा खुशहाल मुल्क वापस देगा! नहीं, बिल्कुल नहीं बल्कि वो यूक्रेन की आवाम से मुआवजा के तौर पर उसके संसाधन छिन लेगा और उनका इस्तेमाल मनमानी तरीके से करेगा बाक़ी हथियार तो अब उसके बिकेंगे ही मतलब आम के आम गुठलियों के दाम। बाक़ी जो रहेगा वो है दो एक जैसी नस्लों के बीच हमेशा का बैर और खुन्नस। ऐसा दुनिया में हर बड़ा देश करता रहा है इसमें कोई नई बात नहीं है मगर दुखद ये है कि इंसानी समाज इसे समझने के बाद भी आज तक इसके खिलाफ एकजुट नहीं हो पाया ना ही इस बाजार के खिलाफ किसी इंसानी सिद्धांत को गढ़ा और पढ़ा गया यही वजह है कि हथियारों का बाजार आज तक इंसानी नस्लों को नमूना बनाकर अपनी शानदार नुमाइश करता आ रहा है। इस बाजार की खूबसूरती ये है कि जब जब कोई देश कंगाली में फंसा होता है ये उसे तुरंत उस दलदल से निकाल देता क्योंकि उस दलदल में कोई और फंस जाता है। एक समय अमेरीका फंसा हुआ था और आज वो दुनिया का बॉस बन गया जबकि दुनिया के कई देशों को वैसी खुशहाली आज तक नसीब नहीं हुई। आज ऐसा रूस कर रहा आगे हो सकता है कई और मुल्क ऐसा करें तो हैरत नहीं होनी चाहिए। ये ऐसा मसला है जिस पर हर इंसान को खुलकर सोचना चाहिए बोलना चाहिए और डटकर इसकी मुखालफत करनी चाहिए नहीं तो सुकून की जिंदगी गुज़री हुई चीज़ बनते देर नहीं लगेगी।
अल्ताफ अली खान,
लेखक मरियम बीएड कॉलेज हल्द्वानी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं

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