मंझधार में महारथियों की साख,अधूरे न रह जाएं इनके ख्वाब

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आजाद कलम विशेष, हल्द्वानी। एक नाम है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का और दूसरा नाम है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का। आपको यकीन नहीं होगा कि कल के नतीजों को लेकर इस समय जो अटकलों का बाजार गर्म है वो यह है कि ऐसा भी हो सकता है कि यह दोनों ही दिग्गज चुनाव हार जाएं। उत्तराखण्ड की जनता का मूड राजनीतिक रूप से बड़ा ही टिपिकल रहा है। यहां की जनता ने अब से पहले भी मुख्यमंत्री रहते नेताओं का चुनाव हराया है। हरीश रावत और भुवन चन्द्र खंडूडी उदाहरण हैं। 2017 में तो हरीश रावत को दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। इस बार हरीश रावत लालकुआं से मैदान में उतरे थे। यहां उनकी जीत को लेकर अब तक संशय के बादल बने हुए हैं। जनता के मन की बात हो या फिर राजनीतिक पंडितों का गुणभाग, कोई भी पुख्ता तौर पर हरदा की जीत के प्रति दावा नहीं कर रहा। हां इतना जरूर सुनने को मिल जाता है कि हरदा जीत सकते हैं, सीट फंसी हुई है। इसी प्रकार का संशय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की खटीमा सीट को लेकर भी है। यहां पर भी यह कहा जा रहा है कि हो सकता है कि धामी जी चुनाव हार जाएं। लोगों का कहना है कि वैसे मुख्यमंत्री का चेहरा हैं शायद ही हारें लेकिन हार भी सकते हैं, जनता का क्या भरोसा हरा ही दे। कुल मिलाकर दोनों बड़ी सियासी पार्टियों के बड़े और मुख्यमंत्री के चेहरे इस समय हार-जीत की इन्हीं अटकलों का केन्द्र बने हुए हैं। इन बड़े चेहरों की हार की बात सामने आती है तो लोग मज़े भी ले रहे हैं और कह रहे हैं कि ‘जय हो जनता जनार्दन की’।

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