दस पॉइंट से समझें बनभुलपुरा रेलवे प्रकरण विवाद की पूरी कहानी

1 – 09.11.2000 को उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करके नैनीताल में उत्तराखंड हाई कोर्ट बनाया गया। उसके बाद साल 2007 में, उत्तराखंड हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के लोग, जो इलाहाबाद से यहां आए थे, उन्होंने अपने आने-जाने के लिए रेलवे से इलाहाबाद और काठगोदाम के बीच एक ट्रेन की मांग की। लेकिन रेलवे यह कहकर मना कर दिया गया कि उस जगह पर नई ट्रेन चलाने के लिए जगह नहीं है। उस समय, कथित अतिक्रमण का मामला सामने आया। कहा गया कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे की 29 एकड़ ज़मीन पर अतिक्रमण है। रेलवे ने उसी साल एक एफिडेविट फाइल करके माननीय उत्तराखंड हाई कोर्ट को बताया कि उसने 29 एकड़ ज़मीन में से 10 एकड़ ज़मीन अतिक्रमण करने वालों से खाली करा ली है और कोर्ट से अपील की कि वह राज्य के अधिकारियों को बाकी 19 एकड़ ज़मीन वापस दिलाने में मदद करने का आदेश दे। मामला शांत हो गया और आगे कोई डिमोलिशन नहीं किया गया।
2 – यह मामला 2014 में फिर से सामने आया जब रवि शंकर जोशी नाम के एक व्यक्ति ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) 178/2019 के रूप में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें एक पुल के ढहने की जांच का आदेश देने का अनुरोध किया गया था – जिसका निर्माण 2003 में गोला नदी पर 9.40 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। पुल निर्माण के तीन-चार साल के भीतर ही ढह गया। याचिकाकर्ता को सुनने के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने 01.09.2014 के अपने आदेश द्वारा एक आयुक्त श्री एच.एम. भाटिया को नियुक्त किया। एडवोकेट कमिश्नर ने क्षेत्र का दौरा किया और 26.06.2015 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें आरोप लगाया गया कि रेलवे ट्रैक के करीब रहने वाले अतिक्रमणकारियों ने अवैध खनन किया जिससे पुल ढह गया।
3 – आयुक्तों की रिपोर्ट के बाद माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रेलवे को तलब किया। माननीय हाई कोर्ट ने 9 नवंबर, 2016 को एक अंतरिम आदेश दिया, जिसमें अधिकारियों को रेलवे की प्रॉपर्टी से कथित अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने कोर्ट में अपील की, जिसमें 9 नवंबर, 2016 के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की गई। इसमें कहा गया कि “अतिक्रमण करने वालों” को हटाया नहीं जा सकता क्योंकि रेलवे प्रॉपर्टी का सीमांकन नहीं किया गया था। याचिका में कुछ सेल डीड का भी ज़िक्र किया गया था। राज्य ने एक काउंटर एफिडेविट भी दायर किया, जिसमें कहा गया कि ज़मीन रेवेन्यू डिपार्टमेंट की है। 10 जनवरी, 2017 को, हाई कोर्ट ने एक बार राज्य सरकार को कथित अतिक्रमण को हटाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
4 – माननीय हाई कोर्ट के आदेश के बाद, प्राइवेट पार्टियों (जिस ज़मीन पर लोग रह रहे है) की तरफ़ से जन सहयोग सेवा समिति व कुछ दूसरी संस्थाओं ने राज्य सरकार के साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और बताया कि माननीय हाई कोर्ट में जो कार्रवाई PIL के तौर पर शुरू हुई थी, उसमें रेलवे की बताई गई ज़मीन से कब्ज़ा हटाने की कोई गुज़ारिश तक नहीं की गई थी। यह भी कहा गया कि माननीय हाई कोर्ट में दायर की गई दलीलों में भी कभी बिना इजाज़त कब्ज़ा करने वालों का ज़िक्र नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि यह भी साफ़ नहीं है कि जिस ज़मीन की बात हो रही है, वह रेलवे की है या नहीं। यह भी बताया गया कि PIL में याचिकाकर्ता ने जैसा आरोप लगाया है, उस 29 एकड़ ज़मीन का कोई सीमांकन नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा कि पूरे इलाके में पक्के ढांचे हैं – जिनमें स्कूल, कॉलेज, हेल्थ सेंटर, घर, कमर्शियल जगहें, मस्जिदें और मंदिर शामिल हैं – और इस पर कब्ज़ा आज़ादी से पहले से चला आ रहा है। याचिकाकर्ताओं का कब्ज़ा कई दशकों से है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से कम से कम 50,000 लोग प्रभावित होंगे। याचिकाकर्ताओं ने अदालत का ध्यान उन दस्तावेजों की ओर भी दिलाया, जो दर्शाते हैं कि उनके पक्ष में निष्पादित सरकारी पट्टों के आधार पर वे भूमि के कब्जे में हैं। कुछ अन्य मामलों में, उन्होंने नीलामी में उच्चतम बोली लगाने वालों के साथ आवंटन के कारण कब्जे का दावा किया था। इसलिए, उन्होंने दावा किया कि उनका कब्जा वैध, अधिकृत और कानूनी है।
6 – प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने 18.01.2017 को कहा कि पीड़ित याचिकाकर्ताओं को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सुना जाना चाहिए। इसने प्रभावित पक्षों को माननीय उच्च न्यायालय का रुख करने और अपने आदेश को वापस लेने या संशोधित करने की मांग करते हुए व्यक्तिगत आवेदन दायर करने का निर्देश दिया। इसने निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई एक खंडपीठ द्वारा की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर दिए जाने और उनके व्यक्तिगत विवाद का ध्यान रखने के बाद ही कोई आदेश पारित करेगा। इसके अलावा, माननीय उच्च न्यायालय को 13 फरवरी, 2017 से तीन महीने की अवधि के भीतर ऐसे सभी आवेदनों का निपटारा करने का निर्देश दिया गया था। तदनुसार, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों पर तीन महीने की अवधि के लिए रोक लगा दी गई। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कब्जाधारियों द्वारा शुरू की गई अपीलीय कार्यवाही, जो जिला न्यायाधीश, नैनीताल के समक्ष लंबित है, उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज की गई टिप्पणियों से “अप्रभावित” होकर निपटाई जाएगी।
7 – माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए, विचाराधीन भूमि के कानूनी शीर्षक का पता लगाने, प्रत्येक व्यक्तिगत कब्जेदार को नोटिस जारी करने और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 की धारा 4 के अनुसार योग्यता के आधार पर निपटान करने के लिए उनकी आपत्तियों को सुनने के लिए एक संपदा अधिकारी नियुक्त किया गया था। जो कि इज़्ज़तनगर बरेली में था और इस पूरे मामले के लिए लोग अपने अपने इलाके के जिम्मेदारों के साथ बरेली जाते रहे लेकिन कथित तौर पर संपदा अधिकारी ने किसी स्रोत का हवाला दिए बिना, निष्कर्ष निकाला कि उनका मानना है कि भूमि रेलवे की है और कब्जाधारी अवैध अतिक्रमणकारी हैं जिन्हें हटाने की आवश्यकता है। तदनुसार, बनभूलपुरा के इंदिरा नगर, नई बस्ती और लाइन नंबर 17, 18, 19 और 20 में फैली 78 एकड़ जमीन पर काबिज लोगों को नए बेदखली नोटिस दिए गए। यहां एक पेच है: विवादित जमीन 29 एकड़ थी, लेकिन नोटिस 78 एकड़ जमीन पर रहने वाले लोगों को जारी किए गए थे। आधिकारिक रिकॉर्ड में कहीं भी विचाराधीन जमीन 78 एकड़ नहीं है। नोटिस मिलने पर, रहने वालों ने अपनी आपत्तियां दर्ज कीं। लेकिन COVID-19 महामारी के कारण लॉकडाउन लगने के कारण कोई सुनवाई नहीं हुई। कोई और पब्लिक जानकारी जारी नहीं की गई, जिसमें लोगों को बताया गया हो कि COVID-19 पाबंदियां खत्म होने के बाद आपत्तियों की दोबारा सुनवाई शुरू हो गई है। और सभी आपत्तियों को एकतरफा खारिज कर दिया गया क्योंकि दोबारा सुनवाई के बारे में कोई जानकारी न होने के कारण रहने वाले लोग नहीं आए।
8 – एकतरफा आदेशों के बाद, पब्लिक प्रेमिसेस (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) एक्ट, 1971 की धारा 9 के तहत निचली अदालत में 1700 अपीलें दायर की गईं। उनमें से बड़ी संख्या अभी भी डिस्ट्रिक्ट जज कोर्ट में पेंडिंग हैं।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा अपीलों के निपटारे का इंतजार किए बिना, माननीय हाई कोर्ट ने पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट 1971 होने के बावजूद 20 दिसंबर, 2022 को नया बेदखली आदेश जारी किया, और प्रशासन को अपना आदेश लागू करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया। इससे वहां रहने वाले लोग आंदोलनरत हुए और सड़कों पर उतर आए और मांग की कि कानून का पालन किया जाए। 28 दिसंबर 2022 को, जिला प्रशासन ने लोगों से अपील की कि वे पूरे इलाके में मुनादी (पब्लिक अनाउंसमेंट) करने दें और पुलिस फोर्स को इलाके में सर्वे करने दें। लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और प्रशासन को आगे नहीं बढ़ने दिया। साथ ही अब मामला 78 एकड़ से बढ़ कर 83 एकड़ पर शिफ्ट हुआ।
9 – माननीय नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद 23 दिसंबर को 2022 को शराफत खान ने PIL 42509/2022 और मतीन सिद्दीकी की 289/2023 याचिका के साथ कुल 11 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया सभी याचिकाओं को क्लब करके 5 जनवरी 2023 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस किशन कॉल और जस्टिस अभय ओका की बेंच ने मानवता व रिहैबिलिटेशन के आधार पर निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाते हुए प्रशासन की कार्यवाही पर विराम लगाया। और 24 जूलाई 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की ट्रिपल बेंच के जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुईया ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें रेलवे, और राज्य सरकार से पूछा गया कि दोनों की भूमि का विवरण, रेलवे का एक्शन प्लान व जो लोग प्रभावित होंगे वो लोग अभी किस खसरा पर काबिज है और अंत में राज्य सरकार 4365 प्रभावितो को कहा पर पुनर्वास करेगी।
10 – तारीखों का लम्बा दौर गुज़रने के बाद 14 नवंबर 2025 जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाला बागची की बेंच ने अगली तारीख पर विस्तृत चर्चा और फाइनल डिस्पोजल के लिए 2 दिसंबर 2025 मुकर्रर कर दी। और 2 दिसंबर 2025 को S.I.R पर बहस कर कारण सुनवाई नही हो सकी और अब 10 दिसंबर 2025 की तारीख मिली हैं।
रेलवे झूठ की बुनियाद और झूठे दस्तवेज़ों के आधार पर नैनीताल हाई कोर्ट से अपने पक्ष में फैसला कराने में तो कामयाब रहा लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सच्चाई सामने आ गई। उत्तराखंड सरकार का चरित्र भी सामने आया कि वो अपनी 30 हेक्टेयर ज़मीन रेलवे को देना चाहता हैं। आख़िर यही क्यो?
इसके पीछे का पोलिटिकल द्रष्टिकोण शायद छूट रहा हैं यह पूरा मामला 2007 से लेकर अब तक राजनीति से सराबोर रहा हैं बनभूलपुरा एक मुस्लिम बाहुल्य आबादी क्षेत्र हैं जहाँ से हमेशा कोंग्रेस या छोटे राजनेतिक दलो को वोट डला हैं। हल्द्वानी सीट उत्तराखंड की सबसे प्रमुख सीटो में शुमार होती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में देश के प्रधानमंत्री खुद इस सीट से भाजपा उम्मीदवार के लिए रैली करने आये थे लेकिन उसके बावजूद भाजपा केंडिडेट हार गया और बनभूलपुरा से लगभग 30 हज़ार वोट कोंग्रेसी केंडिडेट को मिला। इससे पहले के चुनाव में भी इसी तरह के समीकरण रहे है। इसी लिए कॉंग्रेस सरकार ने कभी भी इस जमीन के स्टेटस को नजूल पट्टे से रेसिडेंशियल पर कभी परिवर्तित नही किया और भाजपा सरकार आज सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर यह 30 हेक्टेयर भूमि रेलवे को दान करना चाहती हैं। मंशा साफ है यहाँ के लोग हमेशा कॉंग्रेस को इसी ख्वाब में वोट देते चले आये की यह सरकार एक दिन हमे ज़रूर मालिकाना हक देगी। कॉंग्रेस सरकार ने मलिन बस्ती एक्ट एक बना कर एक कोशिश जरूर की थी लेकिन वो भी बस एक छलावा साबित हुआ जो धरातल पर नही उतर सका। दिसंबर 2022 में मेनस्ट्रीम मीडिया बनभूलपुरा में आकर सबको बांग्लादेशी बताने पर उतारू हुई। उस पूरे मामले को एम्नेस्टी इंटरनेशनल से लेकर एशियाई और योरोपीय कॉउंसिलो ने अपने बयानों में इस मामले को जगह दी व 40 से ज़्यादा देशो की मीडिया ने इस ज़ुल्म को अपनी कवरेज का हिस्सा बनाया। साथ ही भाजपा सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया, जबकि कुछ अखबारों ने साफ साफ लिखा कि भाजपा हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के बहाने इस इलाके को बईमानी साथ साफ करना चाहती हैं ताकि उसका फायदा उसे चुनावो में मिले, और बनभूलपुरा की आबादी 70 हज़ार से घट कर 10 हज़ार रह जाये।
इंसाफ का कोई मज़हब नही होता। अदालत का हर फैसला मंज़ूर हैं मगर सुप्रीम कोर्ट हमे ज़रूर इंसाफ देगा और दुनियाभर के सामने अपने सुप्रीम होने की दलील पेश करेगा और झूठी ताकतों को बेनकाब कर इन आशियानो को हिफ़ाज़त करेगा।
सौजन्य से
शादाब आलम
Association For Protection Of Civil Rights (APCR)
Haldwani (Nainital)
Uttrakhand




