उत्तराखंड:मैदानी जिलों में गेम चेंजर हो सकता है अल्पसंख्यक वोटर

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देहरादून:-उत्तराखंड प्रदेश की 20 से 25 सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका में है। जबकि, अन्य सीटों पर भी इनकी अच्छी खासी संख्या है। अल्पसंख्यक वर्ग के कल्याण को प्रदेश में अलग निदेशालय है। जहां से इनके कल्याणार्थ योजनाएं चलाई जाती हैं। इस चुनाव में भी अल्पसंख्यक वोट बैंक दलों के निशाने पर है।

प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 16.80 लाख है। इनमें 14,06,825 मुस्लिम, 2,36,340 सिख और 37,781 ईसाई शामिल हैं। अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या में तेज वृद्धि दर देखी गई है। बीते दस सालों में अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग उत्तराखंड में बसे हैं। विशेषकर सीमांत क्षेत्रों में इनकी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इन क्षेत्रों की कई विधानसभा सीटों पर बतौर मतदाता ये निर्णायक भूमिका में भी हैं। यूं तो अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता पूरे प्रदेश में हैं, लेकिन इनका प्रभाव मैदानी जिलों यानी हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल में अधिक है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार हरिद्वार जिले में 34 प्रतिशत, देहरादून में 12 प्रतिशत, ऊधमसिंह नगर में 23 प्रतिशत व नैनीताल में 13 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता हैं। अल्पसंख्यक समुदाय की इसी बड़ी संख्या के कारण प्रदेश में अभी तक हर सरकार ने इनके कल्याण के लिए कदम उठाए हैं। प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण आयोग का गठन किया गया है। इसके माध्यम से इनके लिए शिक्षा, धार्मिक, सामाजिक उत्थान व अन्य योजनाओं का संचालन किया जाता है। राजनीतिक दलों ने भी इनके अलग प्रकोष्ठ भी बना रखे हैं।

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