क्या बताएँ चाचा किस ज़माने से हैं शायद जो अब बीत गया उस ज़माने से हैं….
किस ज़माने से हो बेटा
चाचा उस ज़माने से जब…
बिस्तर के चारों कोनों में डंडे होते थे
कभी कील में फ़साँ के भी काम चलाते थे
सोने से पहले मच्छरदानी लगाते थे…
फ़ोन घूमा के मिलाते थे
STD के लिए रात 10 बजे के बाद लाइन लगाते थे…
चप्पल घिस जाए तो नयी रबर डलवाते थे
कभी खुद से तो नहीं डाल पाते थे
लेकिन जब घिस के चप्पल पतली हो जाए
तो रबर बार बार निकलती थी
तो बार बार डालते थे…
पैंट छोटी हो जाए तो
मोहरी और कमर से खुलवा के पहनते थे
शर्ट का कौलर पलटवा के पहनते थे…
साइकल में हवा भरने का एक रुपया लगता था
खुद से पम्प ले के हवा भरते थे
और एक रुपया भी बचाते थे
वो बात अलग है उससे पैंट में ग्रीस लग जाती थी
फिर डाँट भी खाते थे…
पिक्चर VCR में देखते थे
गाने Walkman में सुनते थे…
रोज़ाना चार शो का ज़माना था
लेकिन नौ से बारह कभी जाते नहीं थे…
ईमेल और मोबाइल फ़ोन नहीं था
लेकिन ख़त में हर बात पहुँचाते थे…
गेहूँ आँगन में धूल के छत पे सुखाते थे
पिसाने का पैसा कम लगता था
आटा ज़रूर कटवाते थे…
10 रुपए ले के मेला घूमने जाते थे
उसी में दुनिया ख़रीद के लाते थे…
क्या बताएँ चाचा किस ज़माने से हैं
शायद जो अब बीत गया उस ज़माने से हैं
‘ज़िन्दगी 0 K.M. से साभार’