nainital–कालाढूंगी में हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने मांस से भरी पिकअप को पकड़ा, गाड़ी में तोड़फोड़ कर युवक को बेरहमी से पीटा

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कालाढूंगी। रिपोर्टिंग पुलिस चौकी बैलपड़ाव में हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने मांस से भरी पिकअप को घेरकर पकड़ लिया। यह घटना रामनगर के समीप छोई गांव के पास हुई, जहां संगठन के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और पिकअप को चौकी तक लाए। इसके बाद हंगामा शुरू हो गया और कार्यकर्ता पुलिस चौकी पर तनाव बढ़ाने लगे। घंटों तक चले हंगामे के बाद सीओ रामनगर सुमित पांडे, एसपी सिटी हल्द्वानी प्रकाश चंद्र और एसडीएम कालाढूंगी विपिन चंद्र पंत मौके पर पहुंचे और स्थिति को नियंत्रित किया।

गहमागहमी को देखते हुए पुलिस ने पशु चिकित्सक को बुलाया और मांस के सैंपल लिए। एसपी सिटी प्रकाश चंद्र ने बताया कि मांस से लदी पिकअप को जब्त कर लिया गया है और मांस के सैंपल को लैब में जांच के लिए भेजा गया है। जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। इस दौरान हिंदूवादी संगठन के नेता सूरज चौधरी, विपिन कांडपाल, उमेश चौहान और अन्य कार्यकर्ता मौजूद थे।

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हिंदूवादी संगठन के लोगों ने मेरे पति पर हमला कियाः नूरजहां
वहीं, दूसरे पक्ष से नूरजहां ने रामनगर कोतवाली में लिखित तहरीर दी और आरोप लगाया कि उनके पति नासिर, जो बरेली से भैंस का मीट लेकर आ रहे थे, को हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने छोई गांव में रोका। नूरजहां के अनुसार, संगठन के कार्यकर्ताओं ने नासिर के साथ मारपीट की और उन्हें भीड़ के बीच फंसा दिया। नूरजहां का कहना है कि अगर समय पर पुलिस नहीं पहुंचती तो उनके पति को गंभीर रूप से नुकसान पहुंच सकता था। इसके अलावा, आरोप है कि हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने पुलिस से भी उनके पति पर हमला करने की कोशिश की और गाड़ी में तोड़फोड़ की। नूरजहां ने पुलिस से मामले की निष्पक्ष जांच करने की मांग करते हुए आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की अपील की है।

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कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति पर सवाल
घटनाक्रम यह सवाल उठाता है कि क्या उग्र संगठनों को कानून हाथ में लेने की छूट दी जानी चाहिए? ऐसे संगठनों के कार्यकर्ताओं का हौंसला इतना बढ़ गया है कि वे पुलिस की मौजूदगी में भी कानून को चुनौती देते हुए खुलेआम हिंसा और तोड़फोड़ कर रहे हैं। पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़ा हो रहा है, क्योंकि पुलिसकर्मी मूकदर्शक बनकर यह घटनाएं देख रहे थे।

सवाल यह है कि किसी घटना के सही-गलत होने का निर्णय न्यायालय का काम है, न कि किसी संगठन का। हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा खुद ही लोगों को मुजरिम साबित करके सजा देने का प्रयास करना कानून के शासन की अवहेलना है। ऐसे घटनाएं कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करती हैं और लोगों का न्यायपालिका और पुलिस से विश्वास कमजोर करती हैं।

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