एक्सपर्ट की नज़र: कुछ मीठा कुछ खट्टा है ये बजट

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उत्तराखंड मे टूरिज़्म बढ़ावा देने के लिए एक अवसर ये बन सकता है कि यहाँ रोपवे के निर्माण की अपार संभावनाओ के साथ दुर्गम क्षेत्रों को स्वास्थ्य से जोड़ने की अनिवार्य आवश्यकता भी है इस बार बजट भाषण मे 60 किमी की लंबाई के 8 रोपवे परियोजनाओं को पीपीपी मॉडल में कार्यान्वित करने की बात कही गई है जो हमारे राज्य के लिए कुछ संभावना बन सकती है पर इस अवसर को क्या हमारी राज्य सरकार भुना पाएगी ये बड़ा सवाल है
नदियों के उद्गम का प्रदेश कहे उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों मे जहां सबसे बड़ी आबादी के शहरी क्षेत्र हैं खासकर पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जिला मुख्यालयों मे जहां पीने से साफ पानी की भारी किल्लत है जहां स्वच्छ नदियों के पेय जल की धाराओ को नलों से जोड़ने की आभारभूत जरूरत है वहाँ इस बजट भाषण मे ‘हर घर नल से जल’ ये योजना कारगर साबित हो सकती है

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हम लोग यूरोप की तर्ज मे पिछले 110 साल से पहाड़ों मे ट्रेन का सपना सजाए बैठे हैं 60 के दशक के बजट उसके बाद की सरकारों सहित वर्तमान मोदी सरकार के बजट मे भी बागेश्वर रेल परियोजना का जिक्र किया पर वो सपना अभी तक सपना ही रह गया इस बजट मे उस परियोजना का जिक्र तो नहीं पर हम उम्मीद करते हैं 400 वंदे भारत ट्रेनों मे हमारी टनकपुर बागेश्वर रेल भी शामिल होगी

जो माध्यम वर्ग प्रत्यक्ष कर का भुगतान करता है उसे इस बजट मे कोई खास राहत नहीं दी सिवाय दीर्घकालीन पूजिगत लाभकर मे 5% छूट के , लोगों को उम्मीद थी कम से कम 5 लाख तक बिल्कुल भी टैक्स न हो वर्तमान मे 5 लाख तक छूट तो है पर 5 लाख से अधिक कमाई वालों को ढाई लाख से ऊपर कमाई पर टैक्स लगता है
किसानों की ये दुगुनी करने का भी कोई कोई खाका इस बजट मे स्पष्टतः नहीं है।

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केन्द्रीय बजट मे सरकार ने अपना काम तो कर दिया है पर सबसे अधिक जिम्मेदारी यहाँ के स्थानीय जनता की है कि वो स्थानीय मुद्दों समस्याओ पर विमर्श, चिंतन-मनन करे, संघीय ढांचे का मतलब समझे और अपनी प्रवृति के अनुसार केवल राष्ट्रीय मुद्दों की हवा मे न रहे और अपने प्रदेश पर गंभीरता से सोचें तभी प्रदेश का विकास संभव हो पायेगा।

सरोज आनंद जोशी, सीए

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