4 लेबर कोड विशेषताएं एवं मुख्य बिंदु! सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी, समय पर वेतन भुगतान…

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सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी
पहले: न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत केवल कुछ ही क्षेत्रों को सुरक्षा मिली थी।
अब: मज़दूरी संहिता, 2019 यह सुनिश्चित करती है कि हर श्रमिक — चाहे वह सफ़ाईकर्मी हो, ड्राइवर हो या आईटी पेशेवर — को न्यूनतम मज़दूरी का संरक्षण मिले।
प्रभाव: कोई पीछे नहीं छूटेगा। समान गरिमा। समान वेतन।
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समय पर वेतन भुगतान – श्रमिक गरिमा के लिए आवश्यक
⏳ पहले: वेतन में देरी आम बात थी, जिससे श्रमिकों को वित्तीय तनाव झेलना पड़ता था।
अब: मज़दूरी संहिता, 2019 सभी कर्मचारियों को समय पर वेतन भुगतान अनिवार्य करती है।
प्रभाव: श्रमिकों को समय पर किराया, स्कूल की फीस और बिल चुकाने में मदद मिलती है।

एक राष्ट्र, एक फ्लोर वेज – वेतन में एकरूपता
पहले: न्यूनतम मज़दूरी के लिए कोई राष्ट्रीय मानक नहीं था। राज्यों में व्यापक असमानताएं थीं।
अब: केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय फ्लोर वेज तय करती है – एक न्यूनतम राशि जिससे कोई भी राज्य नीचे नहीं जा सकता।
प्रभाव: सबसे गरीब श्रमिक को भी गारंटीकृत उचित आधार रेखा मिलती है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का सशक्तिकरण – समानता क्रियान्वित
पहले: महिलाओं के लिए असमान वेतन, नौकरी पर प्रतिबंध और सीमित घंटे।
अब: श्रम संहिताएं समान वेतन, बोर्डों में प्रतिनिधित्व और सुरक्षित नाइट शिफ्ट सुनिश्चित करती हैं।
प्रभाव: महिला श्रमिकों को हर क्षेत्र में स्वतंत्रता, सुरक्षा और दृश्यता प्राप्त होती है।

क्रेच सुविधाएँ – कामकाजी माताओं का समर्थन
पहले: कार्यस्थल पर चाइल्डकैअर सहायता? दुर्लभ और अनिवार्य नहीं।
अब: कार्यस्थल पर या उसके पास अनिवार्य क्रेच सुविधाएं सामान्य हैं।
प्रभाव: कामकाजी माताएं करियर और देखभाल के बीच संतुलन बना सकती हैं। भागीदारी बढ़ी, चिंता घटी।

रोजगार का औपचारिककरण – कागज़ का मतलब है शक्ति
पहले: नियुक्ति पत्र नहीं = नौकरी का कोई प्रमाण नहीं, कोई अधिकार नहीं।
अब: श्रम संहिताएं नियमों और शर्तों का विवरण देते हुए आधिकारिक नौकरी पत्र अनिवार्य करती हैं।
प्रभाव: श्रमिकों को कानूनी रूप से सुरक्षा मिलती है। लाभ, न्याय और गरिमा तक पहुंच सक्षम होती है।

वार्षिक स्वास्थ्य जांच – एक अधिकार, विशेषाधिकार नहीं
पहले: कोई स्वास्थ्य आवश्यकता नहीं थी। श्रमिक कल्याण की अनदेखी की जाती थी।
अब: अधिसूचित क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच एक कानूनी अधिकार है।
प्रभाव: बेहतर स्वास्थ्य। शीघ्र निदान। अधिक उत्पादक जीवन।
#श्रमकल्याण

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प्रवासी श्रमिकों के अधिकार – वे जहां भी जाएं, उनका संबंध वहीं से है
पहले: प्रवासी श्रमिकों के पास पहचान, लाभ और सुवाह्यता का अभाव था।
अब: प्रवासियों के पास कानूनी पहचान पत्र, लाभों की सुवाह्यता और यात्रा सहायता है।
प्रभाव: नौकरी बदलें — अधिकार नहीं। लाभ श्रमिक के साथ जाते हैं।

गिग वर्कर्स भी सुरक्षा के हकदार हैं
पहले: डिलीवरी एजेंट, ड्राइवर और ऐप वर्कर्स के पास कोई बीमा या पेंशन नहीं था।
अब: गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कवर किए जाते हैं।
प्रभाव: डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी के लिए स्वास्थ्य, जीवन और पेंशन सुरक्षा।

श्रमिकों के पास अब एक आवाज़ है – और एक मंच भी
पहले: कार्यस्थल की शिकायतों को हल करने का कोई संरचित तरीका नहीं था।
अब: प्रतिष्ठानों में शिकायत निवारण समितियां अनिवार्य हैं।
प्रभाव: निष्पक्ष सुनवाई। समय पर समाधान। अब और चुप्पी नहीं।

ईएसआईसी: अब हर श्रमिक के लिए, बड़ा या छोटा
पहले: केवल बड़े नियोक्ता ही ईएसआईसी स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते थे।
अब: छोटी इकाइयों (10 से कम कर्मचारियों वाली भी) के श्रमिक कवर किए जा सकते हैं।
प्रभाव: स्वास्थ्य सुरक्षा अब कंपनी के आकार पर निर्भर नहीं करती।

गिग वर्कर्स + ईएसआईसी = सामाजिक सुरक्षा में जीत
पहले: ऐप-आधारित श्रमिकों या उनके परिवारों के लिए कोई ईएसआईसी नहीं था।
अब: ज़ोमैटो, स्विगी, उबर डिलीवरी वर्कर्स ईएसआईसी के लिए पात्र हैं।
प्रभाव: चिकित्सा, मातृत्व और यहां तक कि अंतिम संस्कार कवरेज – ठीक वैसे ही जैसे फैक्ट्री वर्कर्स को मिलता है।

वृक्षारोपण श्रमिकों को स्वास्थ्य कवरेज मिलता है
पहले: वृक्षारोपण श्रमिकों को अक्सर औपचारिक लाभों से बाहर रखा जाता था।
अब: नियोक्ता वृक्षारोपण श्रमिकों को ईएसआईसी के तहत कवर करने का विकल्प चुन सकते हैं।
प्रभाव: स्वास्थ्य और विकलांगता सुरक्षा जहां इसकी लंबे समय से आवश्यकता थी।

सभी के लिए ईएसआईसी लाभों का विस्तार
पहले: कुछ क्षेत्रों तक सीमित था।
अब: ईएसआईसी में अब असंगठित श्रमिकों के लिए भी स्वास्थ्य, मातृत्व, विकलांगता और अंतिम संस्कार सहायता शामिल है।
प्रभाव: जीवन के हर चरण में समग्र देखभाल।

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हर श्रमिक के लिए पीएफ और पेंशन
पहले: औपचारिक, बड़े नियोक्ताओं तक सीमित था।
अब: पीएफ, पेंशन और बीमा कवर सभी तक विस्तारित किया गया है – जिसमें स्व-नियोजित और अनौपचारिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
प्रभाव: रोजगार के वर्षों से परे वित्तीय गरिमा।

नौकरी खो दी? उसके लिए एक योजना है।
पहले: छंटनी किए गए श्रमिकों को कोई समर्थन नहीं मिलता था।
अब: नियोक्ताओं को पुनर्कौशल निधि (प्रति श्रमिक 15 दिन की मज़दूरी) में योगदान करना होगा।
प्रभाव: करियर संक्रमण के दौरान कौशल उन्नयन और वित्तीय सहायता।

ई-श्रम: भारत की श्रमिक आईडी क्रांति
पहले: अनौपचारिक श्रमिकों के पास कोई पहचान या कल्याण तक पहुंच नहीं थी।
अब: ई-श्रम पोर्टल हर असंगठित श्रमिक को डिजिटल आईडी और योजना तक पहुंच प्रदान करता है।
प्रभाव: एक आईडी। कई लाभ।

असंगठित श्रमिक – अब आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त
पहले: कोई दृश्यता नहीं = कोई कल्याण नहीं।
अब: श्रम संहिताएं और ई-श्रम लाखों अनौपचारिक श्रमिकों को मान्यता देते हैं।
प्रभाव: समावेशन न्याय की दिशा में पहला कदम है।

समाधान पोर्टल – आपकी उंगलियों पर न्याय
पहले: वेतन या समाप्ति के मुद्दों को उठाने का कोई उचित चैनल नहीं था।
अब: श्रमिक कहीं से भी, कभी भी ऑनलाइन शिकायतें दर्ज कर सकते हैं।
प्रभाव: पारदर्शी, जवाबदेह शिकायत निवारण।

नौकरियां, प्रशिक्षण और बहुत कुछ – सब एक ही जगह
पहले: नौकरी चाहने वालों या प्रशिक्षुओं के लिए कोई केंद्रीय हब नहीं था।
अब: राष्ट्रीय करियर सेवा (एनसीएस) पोर्टल नौकरियां, मार्गदर्शन और कौशल उन्नयन प्रदान करता है।
प्रभाव: विशेष रूप से युवाओं और पहली पीढ़ी के श्रमिकों के लिए शक्तिशाली।

श्रमिकों के लिए खुशखबरी!
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