अंसारी का हुआ “डायन” से सामना सिहर जायँगे किस्सा सुन के
आज़ाद क़लम हल्द्वानी :-
तीन पानी पर बड़े अदब से हाथ जोड़कर उसने लिफ्ट मांगी जब मैं आज दोपहर के बाद बाइक पर गौरा पड़ाव से मंगल पड़ाव की तरफ आ रहा था। ठीक ठाक हुलिया, 40 से 45 साल का मूछ वाला, गोरा चिट्टा, तगड़ा था, नशेड़ी तो नहीं लग रहा था।
मै रुक गया वो बोला दाज्यू मंगल पड़ाव तक छोड़ दो बहुत परेशान हूं। मैने सिंगल हैल्मेट होते हुए भी लिफ्ट दे दी। वो बिना पूछे ही बोलता गया अमिया गांव से आया हूं, होटल में खाना बनाने का काम जानता हूं, सुबह से शहर में काम ढूंढता हुआ पैदल ही भटक रहा हूं, अभी मोटा हल्दू से आ रहा हूं, मोटा हल्दू से पता चला है कि मंगल पड़ाव के आसपास किसी रेस्टोरेंट में काम मिल सकता है, घर में दो बच्चे हैं, पत्नी की मौत हो चुकी है, बहुत थोड़ी सी जमीन है पर दिन में बन्दर और रात में जंगली सूअर उस थोड़ी सी फसल को भी बर्बाद कर देते हैं, पता नहीं किस्मत में क्या लिखा है, इतनी महंगाई और ये बेरोज़गारी वगैरह वगैरह, 5, 6 हजार रुपए महीना से अधिक की कोई नौकरी नहीं मिल पा रही। वो बोलता रहा और मैं हूं हां करता सुनता रहा।
बिना चालान कटे बाइक मंगल पड़ाव पहुंच चुकी थी। उतरकर बोला दाज्यू धन्यवाद। फिर थोड़ा झिझकते हुए सामने खाने के ठेले की तरफ इशारा करते हुए बोला दाज्यू सुबह से भूखा हूं, कुछ……..
महंगाई और बेरोज़गारी डायन जैसी ही तो हैं
मैने कम ही सही उसकी भूख मिटाने का इन्तेज़ाम कर दिया। वो मेरे पैर छूने लगा। अब मैने उसका नाम पूछा, उसने बताया………. मैने कहा कि जाओ…….. और मेहनत से काम की तलाश करके काम ही करना कुछ गलत सलत मत कर बैठना। जाओ अल्लाह मदद करेगा।
वो बोला जी भाई जान।
मै आगे बढ़ गया और वो वहीं खड़ा मुझे देखता रह गया।
अल किस्सा बेरोज़गारी, तंगदस्ती और भूख के आगे सब कुछ फीका पड़ जाता है। ऐसे ना जाने कितने बेरोज़गार और भूखे इन सड़कों पर घूम रहे हैं जिनके बच्चे घर पर उनका इन्तजार कर रहे होंगे
तस्लीम अन्सारी ✒️


