धामी की धाक: 6 माह का कार्यकाल बना पांच साल का वरदान, पढ़िए आज़ाद क़लम का विशेष लेख
आज़ाद क़लम विशेष, हल्द्वानी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस विधानसभा चुनाव में भले ही अपनी खटीमा सीट से चुनाव हार गए हों लेकिन जिस तरह से भाजपा हाईकमान ने उनपर पुनः विश्वास जताते हुए प्रदेश की बागडोर सौंपी है उसने प्रदेश वासियों की जनभावनाओं की भी क़द्र की है। मुख्यमंत्री की रेस में धामी के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, सांसद अजय भट्ट, सतपाल महाराज, धनसिंह रावत का भी नाम था लेकिन धामी ही बागडोर संभालेंगे इसने साबित कर दिया है कि धामी ने अपने मुख्यमंत्री काल के 6 महीने में ही देवभूमि उत्तराखंड की जनता के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है तभी तो मतगणना के परिणाम आने औऱ धामी के चुनाव हार जाने के बावजूद धामी का कद कम नहीं हुआ। उनके नाम की एक लहर चली और आज परिणाम सबके सामने है। धामी ने अपने 6 माह के कार्यकाल में जिस मज़बूत इरादों के साथ प्रदेश का शासन चलाया था उसने ये साबित किया कि इस नेता में गजब की ऊर्जा है। वरना ये सब जानते हैं कि भाजपा ने पांच साल में उत्तराखंड में तीन तीन मुख्यमंत्री बदले, जिसके बाद ये भी कहा जाने लगा था कि भाजपा को जनता की अदालत में इसका जवाब देना पड़ेगा और नुकसान उठाना पड़ेगा। लेकिन जिस तरह से धामी ने 6 माह संभाले औऱ बार बार सीएम बदलने के दाग को मिटाकर भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसी का परिणाम है कि आज वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर से काबिज़ हुए हैं।
धामी भगत सिंह कोश्यारी के हैं करीबी
पुष्कर सिंह धामी जब मुख्यमंत्री बनाये गए थे तो ये चर्चा खूब रही थी कि उन्हें मुख्यमंत्री बनवाने में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवम वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी का बहुत बड़ा रोल है। धामी कोशियारी के करीबी रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि धामी कोश्यारी के शागिर्द हैं और भाजपा हाईकमान ने उनकी ज़िद्द पर ही धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी दी थी। हालांकि इस ज़िम्मेदारी पर धामी खरे उतरे और न अपने राजनीतिक गुरु को निराश किया और न ही भाजपा हाईकमान को।
