हल्द्वानी में मेयर सीट सामान्य होने से फिर बदले सियासी समीकरण, घमासान तय
हल्द्वानी। हल्द्वानी नगर निगम में आगामी मेयर चुनाव के समीकरण एक बार फिर से बदल गए हैं। निकाय चुनाव की पूर्व आरक्षण अधिसूचना में हुए बदलाव के बाद हल्द्वानी मेयर की सीट जो पहले ओबीसी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित थी, अब सामान्य कर दी गई है। शासन ने इसका आदेश जारी कर दिया है और साथ ही प्रदेश में आचार संहिता भी लागू कर दी गई है। इससे हल्द्वानी में चुनावी पटल पर भारी हलचल मच गई है और राजनीतिक समीकरण अचानक से बदल गए हैं। पहले ओबीसी आरक्षित सीट के लिए हल्द्वानी में कई दिनों तक टिकट को लेकर राजनीति गरमाई हुई थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही बीच इस सीट को लेकर घमासान जारी था। भाजपा ने व्यापारी वर्ग से जुड़े नवीन वर्मा को अपने पाले में लाकर ओबीसी सीट पर एक बड़ा चेहरा उतारने की कोशिश की थी, जबकि कांग्रेस ने अपनी रणनीति को गोपनीय रखा था।
अब जब मेयर की सीट सामान्य कर दी गई है, तो शहर की राजनीति में जबरदस्त उथल-पुथल देखने को मिल रही है। आमतौर पर सामान्य सीट पर कई दावेदार होते हैं, और भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास इस समय कई मजबूत चेहरे हैं। हल्द्वानी में अब दोनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है, जो एक बड़े और दिलचस्प चुनावी संघर्ष का रूप ले सकता है। सामान्य सीट पर आने के बाद हल्द्वानी मेयर के चुनाव में एक कहावत लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है ‘एक अनार, सौ बीमार’। इसका मतलब यह है कि अब हल्द्वानी मेयर की सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास ऐसे कई कद्दावर चेहरे हैं, जो टिकट के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करेंगे। भाजपा की बात करें तो उसके पास निवर्तमान मेयर डा. जोगेन्द्र रौतेला जैसे अनुभवी और प्रभावशाली नेता हैं, जिन्होंने दो बार मेयर पद पर रहते हुए शहर के विकास में अहम योगदान दिया है।
उनकी दावेदारी अब एक बार फिर से मजबूत हो गई है। इसके अलावा, भाजपा में और भी कई मजबूत चेहरे हैं जो चुनावी मैदान में दावेदारी कर सकते हैं। भाजपा के भीतर कद्दावर नेताओं की कमी नहीं है, जो इस समय पार्टी के लिए मेयर पद की दौड़ में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस के पास भी किसी से कम नहीं है। पार्टी के पास भी ऐसे कई दमदार चेहरे हैं, जो भाजपा के नेताओं के समकक्ष खड़े हो सकते हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेता, जो पहले इस सीट पर दावेदारी कर चुके थे, अब फिर से एक नए रूप में सामने आ सकते हैं।
ओबीसी आरक्षित सीट से सामान्य सीट पर आने के बाद, यह साफ हो गया है कि अब टिकट को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को बड़ी माथापच्ची करनी पड़ेगी। पहले जहां ओबीसी सीट पर चेहरों की तलाश थी, वहीं अब सामान्य सीट पर चेहरों की भरमार हो गई है। पार्टी को अब किसी एक चेहरे को चुनना होगा और अन्य नेताओं को मनाना पड़ेगा। इसके साथ ही पार्टियों के भीतर टिकट वितरण को लेकर घमासान बढ़ सकता है, क्योंकि हर नेता अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुट जाएगा। यह मुकाबला अब केवल पार्टी के अंदर ही नहीं, बल्कि दोनों पार्टियों के बीच भी दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि इस सीट को जीतने के लिए हर दल पूरी ताकत लगा देगा।