सतत् विकास में शिक्षा का एकीकरण वर्तमान समय की प्राथमिकता होनी चाहिए…(मरियम इंस्टीट्यूट में कार्यशाला)

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हल्द्वानी। शिक्षा और सतत विकास के बीच निरंतर संवाद की जरूरत को महत्वपूर्ण बताते हुए प्रोफेसर अतुल जोशी ने कहा कि सतत् विकास में शिक्षा का एकीकरण वर्तमान समय की प्राथमिकता होनी चाहिए। कुमाऊं विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र के संयोजक व डीन प्रोफेसर अतुल जोशी मरियम इंस्टीट्यूट में इस विषय में आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षार्थियों को सूचित निर्णय लेने और जिम्मेदार कार्यवाही करने के लिए सतत विकास हेतु शिक्षा के द्वारा समर्थ व सशक्त बनाना होगा। कार्यशाला के तकनीकी सत्र को एमबीपीजी कॉलेज शिक्षा शास्त्र विभाग की विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर अनिता जोशी तथा डा. रेनू रावत ने प्रमुख वक्ता के रूप में संबोधित किया।

उन्होंने सतत विकास और शिक्षा के बीच संबंध के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से चर्चा की कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर बीआर पंत ने मानव भूगोल की बारीकियों साथ सतत विकास के विभिन्न पहलुओं को समझाया। इस अवसर पर प्रोफेसर आरएस पथनी, प्रोफेसर एलएम पांडे, डा. सोनी टम्टा, डा. नवल किशोर लोहनी, डा. एसके त्रिपाठी, डा. रुनुमी शर्मा, डा. मतीन आरिफ, डा. सुधा जायसवाल, मनोज उप्रेती, धनंजय कुमार, उमेश भट्ट, अजय मौर्या, प्रमोद वर्मा, तरुण कुमार आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन संयोजक रुनुमी शर्मा तथा मनीषा सिंह ने किया।

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प्रोफेसर पथनी, डा. सोनी टम्टा व डा. नवल किशोर को उल्लेखनीय कार्यों के लिए मिले अवार्ड
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में अल्थ्राइस फाउंडेशन द्वारा प्रोफेसर आरएस पथनी को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, डा. सोनी टम्टा को शोधश्री सम्मान तथा डा. नवल किशोर लोहनी को ‘यंग लीडरशिप अवार्ड इनोवेशन एंड गुड प्रैक्टिस इन एजुकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन’ अवार्ड देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर अल्थ्राइस फाउंडेशन के ट्रस्टी विवेक कश्यप, उपाध्यक्ष विनोद पाठक, मार्गदर्शक सनी मेहता तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. वीरपाल सिंह संधू उपस्थित थे।

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डा. प्रमिला जोशी की पुस्तकों का विमोचन
वहीं, इस अवसर पर मरियम संस्थान की प्राचार्या डा. श्रीमती प्रमिला जोशी की पुस्तक कमाऊॅ संस्कृति की ‘नान्छिना’ तथा ‘बज्याणी का धुर’ का विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया। पुस्तक नान्छिना सीखने की गतिविधियों के रूप में पारंपरिक कुमाऊनी खेलों की शैक्षिक संभावनाओं के बारे में है जबकि बज्याणी के धुर कुमाऊनी लोकगीतों में पर्यावरण शिक्षा के बारे में है।

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