हिजाब के बहाने………..पढ़िए वरिष्ठ साहित्यकार ध्रुव गुप्त का ये लेख

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कर्नाटक के शिक्षा संस्थानों में लड़कियों के हिजाब के विरोध में जो मुहिम चलाई जा रही है, वह बेहद शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है। कुछ कॉलेजों के यूनिफार्म ड्रेस कोड के विरोध के तहत कुछ मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनने का अपना अधिकार नहीं छोड़ा तो कुछ हिन्दू लड़के भगवा ओढ़कर कॉलेज पहुंचने लगे। कॉलेजों में ‘जय श्रीराम’ के नारे भी लगे और कहीं-कहीं ‘अल्लाहु अकबर’ का उद्घोष भी हुआ। वहां धार्मिक विभाजन तेजी से बढ़ा है और शिक्षा संस्थान जंग के मैदान में तब्दील होते जा रहे हैं। घटनाक्रम को देखकर साफ लग रहा है कि यह सब धार्मिक आधार पर लोगों के ध्रुवीकरण की सोची-समझी राजनीति के तहत सुनियोजित रूप से किया जा रहा है। मैं स्वयं बुर्का या पर्दा प्रथा का समर्थक नहीं हूं लेकिन कोई अगर धर्म के नाम पर या व्यक्तिगत इच्छा से परदे में रहना चाहता है तो उसकी आस्था और इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए। वैसे ज्यादातर मुस्लिम औरतें हिजाब नहीं पहनतीं। जो पहनना चाहती हैं उन्हें इसे उतारने के लिए मजबूर करना उनकी आस्था का अपमान भी है और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी। विविधताओं से भरे हमारे देश में हज़ारों तरह के पहनावे हैं। कहीं-कहीं तो औरतों के सामने गज-गज भर के घूंघट में रहने की भी मजबूरी है। समस्या बस मुस्लिम औरतों के हिजाब से है। यह हिजाब गलत है तो उसके खिलाफ आवाज़ मुस्लिम औरतों के बीच से ही उठनी चाहिए। उठती भी रही है। एक लोकतांत्रिक देश में कोई भगवाधारी डरा-धमकाकर उन्हें बुर्का उतारने का आदेश नहीं दे सकता। संस्कृतियों, आस्थाओं, वेशभूषा और भाषाओं की असंख्य दृश्य विविधताओं के बीच एकात्मकता का अदृश्य धागा सदा से हमारे देश की खूबसूरती रही है। सत्ता के लिए जिस तरह से इस धागे को तोड़ने की निरंतर कोशिशें हो रही है उससे हम सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब देश की बुनियाद ही बिखर जाएगी।

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