संजीदगी से कार्य किए बिना हम एक बेहतर समाज की कल्पना नहीं कर सकते, विश्व शिक्षक दिवस पर असिस्टेंट प्रोफेसर दिनेश कुमार का व्याख्यान

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हल्द्वानी। शिक्षकों को एक कार्य बल के रूप में पहचानने, जानने और समझने की जरूरत है। शिक्षा के उभरते नए सामाजिक अनुबंध के दौर में शिक्षकों की आवाज को उचित स्थान देना कार्यपालिका एवं राजनीतिक आर्थिक नेतृत्व की जिम्मेदारी है। यह कहना है असिस्टेंट प्रोफेसर दिनेश कुमार का। वे विश्व शिक्षक दिवस पर शिक्षार्थी, शिक्षकों को बरेली रोड स्थित मरियम इंस्टिट्यूट में अतिथि व्याख्याता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को केवल गुरुतर स्थान पर सम्मानित करते रहने से ही शैक्षिक व्यवस्था की कमियां दूर नहीं हो पाएंगी।

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शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति, उनके कार्य करने की परिस्थिति, उनके प्रशिक्षण की व्यवस्थाएं, उनकी आवाजों को नीति निर्माण में स्थान जैसे कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनपर संजीदगी से कार्य किए बिना हम एक बेहतर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने समय-समय पर शिक्षकों के लिए जो जरूरी अनुशंसाएं की हैं उन्हें धरातल पर उतारकर ही शिक्षा शिक्षक शिक्षार्थी के ताने-बाने को सुदृढ़ और प्रभावी बनाया जा सकता है। उन्होंने शिक्षार्थी शिक्षकों को अभि प्रेरित करते हुए कहा कि वह केवल आध्यात्मिक एवं आत्मिक पक्ष को ही महिमा मंडित ना करते रहें, अपितु एक कार्य बल के रूप में शिक्षकों की समस्याओं के प्रति आम जन की संवेदनशीलता बढ़ाने में अपना योगदान दें। ताकि उनके समाधान निकाले जा सकें। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक जीएम जोशी, डाक्टर रुनुमी शर्मा, मनीषा पाठक, मतीन आरिफ, अजय मौर्या, मनोज उप्रेती, उमेश चंद भट्ट, सुनीता जोशी, चंद्रा बिष्ट आदि उपस्थित थे।

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