दुनिया को इतने सारे *’समझदारों’* से बचाने के लिए एक हो जाओ *मूर्खों*, पढ़िये ध्रुव गुप्त का ये लेख

आज़ाद क़लम, हल्द्वानी। ‘मूर्ख दिवस’ की शुरुआत तो बहुत हल्की परिस्थिति में हुई थी, लेकिन आप चाहें तो इस दिन के आईने में अपनी दुनिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य की झलक भी देख सकते हैं। एक तरह से यह दिन हंसने-हंसाने भर का नहीं, हमारी मनुष्यता की अबतक की यात्रा पर थोड़ा ठहर कर सोचने का अवसर भी है। यह सोचने का कि सदियों-सदियों से अर्जित बुद्धिमता, ज्ञान, विज्ञान, तर्कशक्ति और होशियारी हमें आज कहां लेआई है। एक ऐसे मोड़ पर जहां सरलता, प्रेम, करुणा, दया, भाईचारा, मानवीयता सिरे से गायब हो रहे है। जहां न हम सुरक्षित हैं, न हमारी पृथ्वी, न हमारा पर्यावरण, न हमारे रिश्ते, न हमारे बच्चे और न हमारा भविष्य। हर तरफ एक विचित्र-सी आपाधापी और मारकाट मची हुई है। तमाम मानवीय, नैतिक, सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों को ध्वस्त कर एक दूसरे से आगे निकल जाने की गलाकाट प्रतियोगिता। आपको नहीं लगता कि इस चालाक, अंधे, बेरहम समय से निकलकर हमें एक बार फिर मासूम मूर्खताओं के पुराने दौर में लौट चलना चाहिए ? वह दौर जिसे हमारे शास्त्रों में सतयुग का नाम दिया गया है। हमारी तमाम बुद्धिमता ने हमारी दुनिया को विनाश के कगार पर ला खड़ा कर दिया है। इसे बचाने का रास्ता अब शायद हमारी मूर्खताओं से ही निकले।
तो दुनिया के बचे-खुचे मूर्खों, एक हो जाओ ! दुनिया को इतने सारे समझदारों से बचाने के लिए मूर्खताओं के एक और दौर की शुरुआत करने का यह सही समय है!
