हाथ न होने का मतलब हार मान लेना नहीं होता, नैनीताल के सचिन्द्र का जज्बा रोंगटे खड़े कर देगा

ख़बर शेयर करें -

अफज़ल हुसैन ‘फौजी’
नैनीताल। उत्तराखंड के नैनीताल निवासी सचिंद्र बिष्ट की कहानी जितनी दर्दनाक है, उतनी ही प्रेरक भी। एक बार को इसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं लेकिन उनके हौसले और जज्बे के आगे नत मस्तक हुए बगैर भी नहीं रहा जा सकता। बुखार के बाद अपने दोनों हाथ गंवा देने के बावजूद भी सचिंद्र ने हार नहीं मानी और कटे हाथों की कोहनी में ब्रश लगाकर पेंटिंग्स करना शुरू किया। उनकी बनाई पेंटिंग्स लोगों को भी बेहद पसंद आई। अब तक वो दर्जनों पेंटिंग्स बना चुके हैं। उनकी बनाई पेंटिंग्स की डिमांड विदेशों तक है। इसके अलावा उन्होंने अपने घर की दीवारों में भी बेहद सुंदर पेंटिंग्स बनाई है। पेशे से फिल्ममेकर, ग्राफिक डिजाइनर, वीडियो एडिटर और पर्वतारोही रहे सचिंद्र कुछ वर्ष पूर्व सब कुछ छोड़कर नैनीताल आ गए और शहर के ही पास के कस्बे शीतला में लोगों को पर्वतारोहण के गुर सिखा रहे थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था।

लेकिन एक दिन अचानक आए बुखार ने उनकी दुनिया ही बदल डाली, और उनको अपने दोनों हाथ गंवाने पड़े। दोनों हाथ कट जाने के बाद भी हार नहीं मानी। और जिंदगी के इस दुखद मोड़ के बाद भी जीवन को एक नई दिशा दी। मार्च 2023 में जब वो निकटवर्ती शीतला में अपने रॉक क्लाइंबिंग स्कूल में पर्वतारोहण सीखा रहे थे। तब अचानक उन्हें तेज बुखार आ गया। उन्हें तत्काल हल्द्वानी ले जाया गया। जिसके बाद वो सेप्टिक शॉक में चले गए।

उसके बाद उन्हें दिल्ली मैक्स हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने बताया कि उनके शरीर में बैक्टिरियल इन्फेक्शन हो गया है। जिस वजह से गैंग्रीन उनके शरीर में फैल चुका है। उनका जीवन बचाने के लिए उनके दोनों हाथ और पैरों की उंगलियों को काटना होगा। जिसके बाद उनके दोनों हाथों और पैर की उंगलियों को काटना पड़ा। दिल्ली से उपचार के बाद सचिंद्र हल्द्वानी आ गए और वहां दो माह तक उपचार करवाया। उन्होंने बताया कि उपचार में करीब 35 लाख रुपए का खर्च आया। उनके रिश्तेदारों और दोस्तों ने उनकी उपचार में मदद की।

Ad