MBPG में आजादी के 75 वर्ष जनजाति शिक्षा और चुनौतियां विषय पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार

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हल्द्वानी। शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार की शुरुआत विशिष्ट अतिथियों द्वारा मां शारदे के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर की गई। सरस्वती वंदना की सुरीली प्रस्तुति के पश्चात अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डॉ.एन.एस बनकोटी ने कहा इस सेमिनार का लाभ वास्तविक रूप से जनजाति समाज को मिले इसके लिए हम सब का प्रयास होना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार की संयोजक डॉ. सोनी टमटा ने आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षाशास्त्र विभाग इन गतिविधियों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने का संपूर्ण प्रयास कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व विभागाध्यक्ष व डीन शिक्षाशास्त्र विभाग एसएसजे परिसर अल्मोड़ा प्रो. एनसी ढौंडियाल ने विगत 35 वर्षों की जनजाति क्षेत्र में की गई अपनी शोध प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि सांस्कृतिक विभिन्नता का संरक्षण करते हुए शिक्षा के माध्यम से जनजातीय समाज के आत्मसम्मान को कायम रखते हुए उनके जीवन का स्तर समृद्ध किया जा सकता है। जनजातीय समाज के जीवन में संघर्ष सदा रहता है परंतु उनके सक्सेस स्टोरी को हाईलाइट करने की भी आवश्यकता है। कन्नड़ विश्वविद्यालय के प्रो. के.एम. मैत्री ने ऑनलाइन व्याख्यान देते हुए कहा कि वोटल संस्थान आदिवासियों की शिक्षा का केंद्र रहा है जो आगे चलकर गुरुकुल बन गए। आज जनजाति समाज अपनी भाषा संस्कृति से दूर जा रहा है जिसे रोकने की जरूरत है। आईसीएसएसआर के शोध निदेशक डॉ जी.एस.सौन ने कहा कि यह संगोष्ठी नवीन शोधार्थियों के लिए शिक्षा का माध्यम बनेगी। इस सेमिनार में व्यापक मंथन व चिंतन के पश्चात नवीन शिक्षा नीति 2020 में आए परिवर्तनों के साथ नई योजनाओं को दिशा देने के काम भी आएगा। शिक्षा का मातृभाषा में होना एक क्रांतिकारी पहल है यद्यपि एक समस्या यह भी है की जनजाति समाज की भाषा अधिकतर लिपिबद्ध नहीं है।

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डीएसबी परिसर नैनीताल डॉ पदम सिंह बिष्ट ने कहा शिक्षा का स्तर उन्नत और समृद्ध होने से जनजाति समाज सहित सभी वर्गों का विकास व उन्नति होगी। लखनऊ विश्वविद्यालय से आई डॉ किरण लता डंगवाल ने कहा कि जनजाति समाज का अपनी जड़ों से जुड़ा रहना ही उनको आम से खास बनाता है। डॉ आर एस भाकुनी उपनिदेशक उच्च शिक्षा ने कहा कि सिद्धांतों व किताबों से बाहर निकलकर धरातल पर कार्य करते हुए समाज के हर वर्ग का विकास किया जा सकता है।

प्रोफेसर वेद राज आचार्य त्रिभुवन विश्वविद्यालय नेपाल ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसी संगोष्ठी के माध्यम से जनजातीय शिक्षा पर विस्तृत चर्चा करना आज बहुत प्रासंगिक है उन्होंने भारत नेपाल के विभिन्न जनजातीय समूह पर चर्चा करते हुए कहा कि जनजातीय समाज के बच्चे अब उच्च शिक्षा के लिए जब बाहर जाते हैं तो वह अपनी मातृभाषा नहीं बोलते यह एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है क्योंकि इससे वह अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। उद्घाटन सत्र के पश्चात तीन अलग-अलग हाल में ऑनलाइन ऑफलाइन छात्रों में लगभग 50 से ज्यादा शोधार्थियों ने जनजाति शिक्षा एवं चुनौतियों से संबंधित अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। विषय विशेषज्ञ डॉ बी आर पंत डॉ प्रेम प्रकाश डॉ अनिता जोशी डॉ टीसी पांडे आदि ने शोधार्थियों की शोध पत्र की समीक्षा करते हुए जरूरी सुझाव दिए। अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में डॉ मनीषा नौरियाल डॉ. संजय खत्री, डाँ दिनेश जायसवाल, डॉ. कमरुद्दीन डॉ उर्वशी पांडे , डॉ ममता अधिकारी डॉ.नवीन शर्मा, डॉ संजय सुनाल, डाँ हरीश पाठक , गौर्वेन्दर आर्य व श्री नवीन शर्मा ने सक्रिय सहयोग किया। सेमिनार का संचालन प्रो कमला पंत व डॉ नवल लोहनी द्वारा किया गया। अन्त में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया।

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