‘कुलदेवता’ तो डायनासोर के अंडे निकले, ‘काकड़ भैरव’ समझकर पीढ़ियों से पूज रहे थे लोग

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भारत के कई इलाकों में देवी-देवताओं के साथ-साथ लोक-देवताओं की भी पूजा होती है। लोग मानते हैं ये लोक-देवता उनकी ज़मीन, पशुओं आदि की रक्षा करते हैं। कई बार इन लोक-देवताओं की कोई मूर्ति नहीं होती, बस कुछ पत्थर होते हैं, जिन्हें पूजा जाता है। ऐसा ही मध्य प्रदेश के धार में हो रहा था। बीते दिनों कुछ वैज्ञानिक धार पहुंचे और इन पत्थरों की जांच की। तब पता चला कि ‘कुलदेवता’ तो डायनोसॉर के अंडे थे!

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक धार के पाडल्या गांव के रहने वाले वेस्ता मंडलोई कुछ गोल पत्थरों को अपने कुलदेवता काकड़ भैरव समझ कर पूजते थे। काकड़ का मतलब ज़मीन या खेत होता है। वेस्ता के यहां ये मान्यता कई पीढ़ियों से चली आ रही थी। वेस्ता के परिवार का मानना था ये देवता उनके खेत-खलिहान और जानवरों की रक्षा करते थे। वेस्ता के अलावा इलाके के कई और लोगों को भी खुदाई में ऐसे ही गेंदनुमा पत्थर मिले थे, जिनकी पूजा होती थी।

लखनऊ के बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान के कुछ वैज्ञानिक हाल ही में धार पहुंचे थे। जहां टीम को इन पत्थरों के बारे में पता चला। जब टीम ने पत्थरों की जांच की तो पता चला कि ये डायनासोर के अंडे हैं, जो जीवाश्म बन चुके हैं। एक्सपर्ट्स ने अंदाजा लगाया है कि ये अंडे टाईटानोसॉरस नाम की प्रजाति वाले डायनासोर के हैं।

मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी के आस-पास इलाकों में डायनासोर अच्छी खासी संख्या में रहा करते थे। धार में ही देश का जुरासिक पार्क है। इसे डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जानते हैं। इसी साल जनवरी में धार में डायनासोर के 256 अंडे मिले थे। इन अंडों का आकार 15 से 17 सेंटीमीटर तक था।

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